मन की निराशा

इंसान अपने जीवन मे कई कार्यो को लेकर निराश हो जाता है । निराशा एक भावना है जो व्‍यक्ति को असफलता, असमर्थता या अपेक्षाएं पूरी नही होने पर होती है । यह व्‍यक्ति को असंतुष्‍ट ,हताश और हतोत्‍साहित करती है । निराशा इंसान को कमजोर करता है जिससे इंसान हमेशा नकारात्‍मक सोचते रहता है । जब इंसान निराशा के घेरे मे रहता है तब उसे कही से भी कोई सही रास्‍ता नजर नही आता है । जिससे इंसान अपनी समस्‍याओ को लेकर अन्‍दर  ही अन्‍दर घूटते रहता है इस तरह से एक इंसान निराशा के चलते अपने व्‍यक्तित्‍व को भूल जाता है ।

2/3/20241 मिनट पढ़ें

नमस्‍कार दोस्‍तो मै आप सभी का बहुत बहुत स्‍वागत करता हूं । दोस्‍तो आज इस संसार मे हर दस मे से आठ आदमी को किसी न किसी बात को लेकर निराशा रहती है । चाहे उसके निराश का कारण कुछ भी परन्‍तु जब इंसान अपने सोचे हुये कार्य को पूरा नही कर पाता तो उसके दिमाग मे निराशा होने लगता है और वह कमजोर हो जाता है । आज हम इंसान के मन की निराशा की बात करने वाले है ।

आगे बढ़ने से पहले यह जान लेते है कि निराशा किसे कहते है:-

निराशा एक भावना है जो व्‍यक्ति को असफलता, असमर्थता या अपेक्षाएं पूरी नही होने पर होती है । यह व्‍यक्ति को असंतुष्‍ट ,हताश और हतोत्‍साहित करती है । निराशा इंसान को कमजोर करता है जिससे इंसान हमेशा नकारात्‍मक सोचते रहता है । जब इंसान निराशा के घेरे मे रहता है तब उसे कही से भी कोई सही रास्‍ता नजर नही आता है । जिससे इंसान अपनी समस्‍याओ को लेकर अन्‍दर  ही अन्‍दर घूटते रहता है इस तरह से एक इंसान निराशा के चलते अपने व्‍यक्तित्‍व को भूल जाता है ।

इंसानो मे निराशा होने से व्‍याकुलता बढने लगती है और धर्य कम होने लगता है ।

अब हमे समझने वाली बात यहां पर यह है कि आखिर इंसान को किन किन परिस्थितियो मे निराशा का सामना करना पड़ता है :-

01-व्‍यक्तिगत जीवन मे कठिनाईयां:-जब इंसान अपना जीवन यापन करता है तो उस समय मे भी अनेक चुनौतियां आती है, अनेक कठिनाईयां, अनेक परेशानियां आती रहती है जिससे यदि इंसान नही लड़ सकता तब भी व्‍यक्ति के मन मे निराशा उत्‍पन्‍न होती है । इंसान हर समय यही सोचते रहता है कि कैसे इस समस्‍या का निवारण किया जाय । इस प्रकार इंसान अपने समस्‍याओं के बारे जब अधिक सोचने लगता है तब ऐसी स्थिति मे इंसान का स्‍वास्‍थ्‍य भी खराब हो सकता है जिससे व्‍यक्ति का मन निराशा से भर जाता है ।

02- कार्यो मे असफलता मिलना:- यदि कोई इंसान कोई भी कार्य करता है उस कार्य मे अपना पूरा लगन और मेहनत डालता है फिर भी जब वह कार्य सफल नही होता तो वह इंसान दुखी हो जाता है और सोचता है कि मैने तो इस कार्य मे पूरा मेहनत व पूरी साहस लगाया था फिर भी यह कार्य असफल हो गया इस कार्य मे मुझे सफलता नही मिली । इसी बात को लेकर इंसान निराश हो जाता है । इंसान अपने कार्यो मे मिली असफलता के चलते इतना निराश होता है कि वह अपने जीवन के हर कार्य को करने से पहले अनेको बार सोचता है कि इस कार्य मे क्‍या सफलता मिलेगी और यह सच भी है कि जिस इंसान का मन निराशा से भरा हो वह कार्यो के प्रति इतना सोचना स्‍वाभाविक है ।  

03-  सामाजिक दबाव :- जब इंसान कोई कार्य करता है और यदि उस कार्य मे उस इंसान को सफलता नही मिलता है तो समाज मे रहने वाले अनेक लोग उस कार्य की असफलता को लेकर अनेक प्रकार की नकारात्‍मक बाते करते है और उस व्‍यक्ति को बार-बार पूछते है कि तुम असफल कैसे हो गये । या फिर यह कार्य तुम्‍हारे लिये उपयुक्‍त नही था। तुम्‍हे यह कार्य नही करना चाहिए था ,तुम इस कार्य के काबिल नही थे ,इस प्रकार अनेको सवाल के चलते इंसान अपने अन्‍दर एक अलग सा दबाव महसूस करने लगता है और इस दबाव के चलते इंसान का मन घोर निराशा की अंधकार मे खोने लगता है । यदि वह इंसान इस अंधकार से निकलना भी चाहेगा तो यह समाज उसे निकलने नही देगा उसे तरह तरह के ताने मार-मारकर वापस उसी निराशा के अंधकार मे धकेल देता है । 

कई लोगो के मन मे यह सवाल जरूर होगा कि क्‍या इंसान के मन मे यदि निराशा भर जाता है तो उससे कभी नही निकल पाता । ऐसा बिल्‍कुल भी नही होता । यदि इंसान के मन मे निराशा भर गया है तो उसे भी ठीक करने के लिये कुछ विशेष कदम उठाये जा सकते है जिससे इंसान के मन मे भरे निराशा को दूर किया जा सकता है ।

01-अपनी सोच को सकारात्‍मक रखना :-यदि इंसान को अपने हर कार्य मे असफलता ही मिल रहा है तो स्‍वभाविक है कि उनके मन मे निराशा जरूर हो जायेगा परन्‍तु यदि इंसान यह जानते हुये भी कि मुझे इस कार्य मे असफलता मिली है परन्‍तु आगे मै जरूर सफल होऊंगा यह सोच अपने अन्‍दर के निराश भाव को समाप्‍त करने मे अहम भूमिका निभाता है । इसलिये  इंसान के मन मे कितना भी निराशा भरी हो यदि उस इंसान मे सफल होने की सकारात्‍मक सोंच होती है तो वह निश्‍श्चित ही हर प्रकार के नकारात्‍मक शक्ति को पराजित कर सकता है ।

02-पूर्ण समर्पण :-यदि कोई इंसान को अपने कार्यो मे बार -बार असफलता मिल रहा है वह अपने कार्यो मे सफलता के पास पहुंच नही पा रहा है । इससे इंसान के मन मे निराश होना स्‍वाभाविक है परन्‍तु आपको शांत मन से यह सोचना होगा कि मै सफल क्‍यो नही हो पा रहा हूं क्‍या कार्य मे मेरी पूर्ण समर्पण नही है इस प्रकार अपने कार्य के प्रति सोंचने पर आपके अन्‍दर एक नयी ऊर्जा का संचार होगा और आपके मन का निराशा धीरे धीरे समाप्‍त हो जायेगा और जब निराशा समाप्‍त होगा तो स्‍वत:  ही सफलता के रास्‍ते खुल जायेगें ।

03- उचित सहायता लेना :- यदि कोई इंसान के अन्‍दर इतनी निराशा भरा हुआ है कि वह इंसान अपने कार्यो के बारे मे सोंच भी नही पा रहा है ऐसे मे हर उस इंसान को अपने मित्र, अपने परिवार, को अपने मानसिक स्थिति के बारे मे जरूर बताना चाहिए एवं अपने असफल होने का कारण को स्‍पष्‍ट रूप से बताना चाहिए इससे होगा यह कि आपके परिवार या आपके मित्र आपके कार्य करने के तरीको को बारीकी से देखेगे और आपकी असफलता के कारणो को आपको बतायेंगी  इससे आपको भी यह समझ मे आ जायेगा कि इस कार्य को पूरा करने के लिये इस कमी को दूर करना होगा और इस तरह आपके अन्‍दर की निराशा भी दूर हो सकती है ।