अधिक योग्‍य बने बिना बड़ो की बराबरी मत करो

बड़ों की बराबरी की बात करते हैं तो इसका अर्थ केवल उम्र से नही होता बल्कि अनुभव,ज्ञान, और नैतिकता से भी होता है। बड़ो के पास अक्‍सर वह अनुभव होता है जो केवल समय के साथ ही प्राप्‍त होता है। यह अनुभव न केवल उनके जीवन के विभिन्‍न पहलुओं को समझने मे मदद करता है बल्कि उन्‍हें समाज के उत्‍थान मे भी एक महत्‍वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है। बड़ों की बराबरी करने का प्रयास तब तक फलदायी नही हो सकता जब तक कि हमने उस अनुभव को प्राप्‍त नही किया हो जो उन्‍हें विशिष्‍ट बनाता है।

7/10/20241 मिनट पढ़ें

अधिक योग्‍य बने बिना बड़ो की बराबरी मत करो:

प्रस्‍तावना:-

हमारे समाज मे हर व्‍यक्ति की अपनी एक भूमिका होती है, और इन भूमिकाओं का निर्वहन हमें एक समृद्ध और संतुलित समाज की ओर ले जाता है। जब हम बड़ों की बराबरी की बात करते हैं तो इसका अर्थ केवल उम्र से नही होता बल्कि अनुभव,ज्ञान, और नैतिकता से भी होता है। यह लेख इस विचार को विस्‍तृत करने के लिए लिखा गया है कि अधिक योग्‍य बने बिना बड़ो की बराबरी करने का प्रयास क्‍यों अनुचित और नुकसानदायक हो सकता है। इसी विषय पर विस्‍तृत रूप से चर्चा करेंगे।

अनुभव का महत्‍व:-

बड़ो के पास अक्‍सर वह अनुभव होता है जो केवल समय के साथ ही प्राप्‍त होता है। यह अनुभव न केवल उनके जीवन के विभिन्‍न पहलुओं को समझने मे मदद करता है बल्कि उन्‍हें समाज के उत्‍थान मे भी एक महत्‍वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है। बड़ों की बराबरी करने का प्रयास तब तक फलदायी नही हो सकता जब तक कि हमने उस अनुभव को प्राप्‍त नही किया हो जो उन्‍हें विशिष्‍ट बनाता है।

ज्ञान और शिक्षा:-

ज्ञान और शिक्षा का संबंध केवल पाठ्यपुस्‍तकों से नही होता, बल्कि यह जीवन के अनुभवों, परिस्थितियों और घटनाओं से भी होता है। बड़ों के पास न केवल औपचारिक शिक्षा होती है बल्कि वे जीवन की विभिन्‍न चुनौतियों से निपटने का कौशल भी रखते हैं। उनके ज्ञान और शिक्षा का सम्‍मान करना और उनसे सीखना हमें अधिक योग्‍य बनने मे सहायता कर सकता है।

नैतिकता और मूल्‍य:-

नैतिकता और मूल्‍य हमारे जीवन के आधार होते हैं। बड़ों ने अपने जीवन मे कई ऐसे दौर देखे होते हैं जहां उन्‍होने इन मूल्‍यों का पालन करते हुए कठिनाइयों का सामना किया होता है। उनके नैतिक आदर्शों का सम्‍मान करना और उन्‍हें समझना हमारे लिए आवश्‍यक है ताकि हम भी उन्‍हीं ऊंचाइयों तक पहुंच सकें। बिना इन मूल्‍यों को आत्‍मसात किए, बड़ों की बराबरी करने का प्रयास व्‍यर्थ है।

समाज में संतुलन:-

समाज का संतुलन बनाए रखने मे हर व्‍यक्ति की भूमिका महत्‍वपूर्ण होती है। बड़ों का सम्‍मान और उनके अनुभवों का मान्‍यता देना समाज में एक सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार करता है। अगर हम बिना योग्‍य बने उनकी बराबरी करने का प्रयास करेंगे, तो यह संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे सामाजिक असंतोष और विघटन उत्‍पन्‍न हो सकता है।

स्‍व-अधिगम की प्रक्रिया:-

स्‍व-अधिगम का अर्थ है अपने अनुभवों और सीखों से स्‍वयं को विकसित करना। यह प्रक्रिया तब ही सार्थक हो सकती है जब हम अपने से अधिक अनुभवी और ज्ञानवान लोगों से सीखें। बिना इस प्रक्रिया को अपनाए बड़ों की बराबरी करना न केवल हमारे लिए बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक हो सकता है।

आत्‍मसम्‍मान और आत्‍मविश्‍वास:-

आत्‍मसम्‍मान और आत्‍मविश्‍वास का विकास तब होता है जब हम अपने अनुभवों और सीखों से आगे बढ़ते हैं। यह महत्‍वपूर्ण हैं कि हम अपने आत्‍मसम्‍मान और आत्‍मविश्‍वास को सही दिशा में विकसित करें और बड़ो की बराबरी करने का प्रयास तब तक न करें जब तक हम स्‍वयं को उस स्‍तर पर नही ला सकते। बिना इसके, हमारा आत्‍मसम्‍मान और आत्‍मविश्‍वास क्षीण हो सकता है।

बड़ों का सम्‍मान:-

बड़ों का सम्‍मान करना हमारे भारतीय संस्‍कृति का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। यह न केवल हमारे व्‍यक्तिगत विकास के लिए आवश्‍यक है बल्कि समाज के सामूहिक विकास के लिए भी महत्‍वपूर्ण है। बड़ों की बराबरी करने का प्रयास तब तक ही सफल हो सकता है जब हम उन्‍हें सम्‍मान दें और उनके अनुभवों से सीखें।

निष्‍कर्ष:-

अधिक योग्‍य बने बिना बड़ों की बराबरी करने का प्रयास हमें एक सशक्‍त और संतुलित समाज की ओर नही ले जा सकता। इसके बजाय, हमें उनके अनुभवों, ज्ञान और नैतिकता का सम्‍मान करना चाहिए और उनसे सीखनें का प्रयास करना चाहिए। यह हमारे व्‍यक्तिगत और सामूहिक विकास के लिए आवश्‍यक है। समाज के संतुलन और सामूहिक विकास के लिए आवश्‍यक है कि हम बड़ों का सम्‍मान करें और उनसे प्रेरणा लें। इस प्रकार, अधिक योग्‍य बने बिना बड़ों की बराबरी न करना ही सही मार्ग है, जो हमें एक समृद्ध और सशक्‍त समाज की ओर ले जाएगा।