दोहरा चरित्र

लोगों को ऐसे लोगों से बचना बहुत आवश्‍यक होता है जिनका दोहरा चरित्र होता है दोहरा चरित्र, समाज और मनोविज्ञान दोनों के महत्‍वपूर्ण मुद्दों मे से एक है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्‍यक्ति अपने वास्‍तविक विचारों,विश्‍वासों या भावनाओं के विपरीत आचरण करता हैं। दोहरा चरित्र किसी व्‍यक्ति,समूह या आस्‍था के द्वारा अनुचित व्‍यवहारा को छिपानें के लिए अपनाया जा सकता है, और यह समाज में विभिन्‍न स्‍तरों पर देखा जा सकता है। 

6/5/20241 मिनट पढ़ें

दोहरा चरित्र : समाज और मनोविज्ञान का एक गहन अध्‍ययन 

प्रस्‍तावना :-

दोहरा चरित्र, समाज और मनोविज्ञान दोनों के महत्‍वपूर्ण मुद्दों मे से एक है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्‍यक्ति अपने वास्‍तविक विचारों,विश्‍वासों या भावनाओं के विपरीत आचरण करता हैं। दोहरा चरित्र किसी व्‍यक्ति,समूह या आस्‍था के द्वारा अनुचित व्‍यवहारा को छिपानें के लिए अपनाया जा सकता है, और यह समाज में विभिन्‍न स्‍तरों पर देखा जा सकता है। 

दोहरा चरित्र का मनोवैज्ञानिक आधार :-

  • मनोविज्ञान मे दोहरा चरित्र को अक्‍सर सह-विकास असंगति के रूप मे देखा जाता है। सह-विकास असंगति एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्‍यक्ति के विचार,विश्‍वास और आचरण मे असंगति होती है। यह असंगति मानसिक तनाव का कारण बनती हे ,जिसे व्‍यक्ति विभिन्‍न तरीकों से हल करने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिए ,यदि किसी व्‍यक्ति का विश्‍वास है कि झूठ बोलना गलत है लेकिन वह किसी परिस्थिति मे झूठ बोलता है,तो यह स्थिति उसे मानसिक तनाव मे डाल सकती है। 

  • लोग दोहरा चरित्र अपनाते है क्‍योकिं व सामाजिक स्‍वीकृति,सम्‍मान,और प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त करना चाहतें हैं। जब किसी व्‍यक्ति को लगता है कि उसके वास्‍तविक विचार या आचरण समाज द्वारा स्‍वीकृत नही होंगे, तो वह दोहरा चरित्र अपनाते हैं। यह आत्‍म-संरक्षण की एक रूप है जहां व्‍यक्ति अपनी सामाजिक पहचान और स्थिति को बनाए रखने के लिए अपने वास्‍तविक विचारों और भावनाओं को छिपाता है।

समाज मे दोहरा चरित्र :-

  • समाज मे दोहरा चरित्र विभिन्‍न रूपों मे प्रकट होता है। राजनीति, धर्म, कार्यस्‍थल और व्‍यक्तिगत संबंधों मे यह अक्‍सर देखा जा सकता है। राजनीतिक नेता, जो सार्वजनिक रूप मे नैतिकता और ईमानदारी की बात करते हैं, निजी जीवन मे भ्रष्‍टाचार और अनैतिक गतिविधियों मे शामिल हो सकते हैं। इसी प्रकार धार्मिक नेता, जो अपने अनुयायियों को धार्मिक नैतिकता का पालन करने का उपदेश देते हैं, स्‍वयं उन नैतिकताओं का उल्‍लंघन कर सकते हैं। 

  • कार्य स्‍थल मे दोहरा चरित्र विशेष रूप से प्रचलित है। कर्मचारी और नियोक्‍ता दोनो अपने वास्‍तविक विचारों और भावनाओं को छिपा सकते हैं ताकि वे पेशेवर रूप से सफल हो सकें। उदाहरण के लिए एक कर्मचारी अपने उच्‍चाधिकारीयों के निर्णयों से असहमत हो सकता है, लेकिन उसे अपनी नौकरी बचाने के लिए सार्वजनिक रूप से समर्थन दिखाना पड़ सकता है। इसी प्रकार नियोक्‍ता भी अपने कर्मचारीयों के सामने एक सकारात्‍मक छवि प्रस्‍तुत कर सकतें हैं, जबकि उनके वास्‍तविक इरादे अलग हो सकते हैं।

दोहरे चरित्र के परिणाम :-

  • दोहरा चरित्र न केवल व्‍यक्तिगत स्‍तर पर बल्कि सामाजिक स्‍तर पर भी गंभीर परिणाम उत्‍पन्‍न कर सकता है। व्‍यक्तिगत स्‍तर पर यह मानसिक तनाव, आत्‍म-सम्‍मान की कमी और आंतरिक संघर्ष का कारण बन सकता है। व्‍यक्ति अपने आप को धोखा देने की भावना से ग्रस्‍त हो सकता है, जो मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर नकारात्‍मक प्रभाव डालता है।

  • सामाजिक स्‍तर पर दोहरा चरित्र अविश्‍वास और कपटता का वातावरण पैदा करता है। जब लोग महसूस करते हैं कि उनके नेता ,सहकर्मी या यहां तक की उनके करीबी रिश्‍तेदार दोहरा चरित्र अपनाते हैं तो यह विश्‍वासघात और धोखाधड़ी की भावना को जन्‍म देता है। इसका परिणाम यह होता है कि समाज मे आपसी भरोसे की कमी हो जाती है, जो सामाजिक संरचना को कमजोर करती है। 

दोहरा चरित्र की पहचान :-

दोहरा चरित्र जिसमें व्‍यक्ति अपने वास्‍तविक विचारों, विश्‍वासों या भावनाओं के विपरीत आचरण करता है। इसे पहचानना मुश्किल हो सकता है क्‍योकिं लोग अक्‍सर इसे छिपानें मे कुशल होते हैं। हांलाकि कुछ संकेत और व्‍यवहार हमें दोहरा चरित्र पहचानने मे मदद कर सकते हैं। यहां कुछ मुख्‍य बिंदु दिए गए हैं जो दोहरे चरित्र को पहचानने मे सहायक हो सकते हैं :-

  • कहने और करने मे अंतर :-

    दोहरा चरित्र पहचानने का सबसे स्‍पष्‍ट तरीका है कि किसी व्‍यक्ति के शब्‍दों और कार्यों के बीच असंगति हो देखना। यदि कोई व्‍यक्ति एक बात कहता है लेकिन विपरीत आचरण करता है, तो यह दोहरा चरित्र का संकेत हो सकता है।

  • विभिन्‍न परिस्थितियों मे अलग-अलग व्‍यवहार :-

    दोहरा चरित्र रखने वाले लोग अक्‍सर अलग-अलग परिस्थितियों मे अलग-अलग व्‍यवहार करते हैं। वे एक समूह या स्थिति में एक तरह से आचरण कर सकतें है और दूसरी स्थिति मे पूरी तरह से विपरीत। यह विरोधाभासी व्‍यवहार उनकी असली पहचान को छिपाने का प्रयास हो सकता है।

  • दूसरों की कठोर आलोचना :-

    दोहरा चरित्र वाले लोग अक्‍सर दूसरों की कठोर आलोचना करते हैं, विशेष रूप से उन व्‍यवहारों की जो वे स्‍वयं गुप्‍त रूप से अपनाते हैं। वे दूसरों को नैतिकता और ईमानदारी की नसीहत देते हैं जबकि खुद उन मानकों का पालन नहीं करते। इस प्रकार की आलोचना एक सुराग हो सकती है कि व्‍यक्ति दोहरा चरित्र अपनाए हुए हैं।

  • स्थिति के अनुसार विचार बदलना :-

    दोहरा चरित्र वाले व्‍यक्ति अपनें विचारों और विश्‍वासों को स्थिति अनुसार बदलते हैं ताकि वे सामाजिक स्‍वीकृति प्राप्‍त कर सकें या अपनी स्थिति को सुरक्षित रख सकें। वे अपने विचारों को समय-समय पर बदल सकते हैं ताकि वे विभिन्‍न समूहों या लोगों को प्रभावित कर सकें।

  • पारदर्शिता की कमी :-

    दोहरा चरित्र पहचानने का एक और तरीका है पारदर्शिता की कमी। जो लोग दोहरा चरित्र रखते हैं, वे अक्‍सर अपने वास्‍तविक विचारों और भावनाओं को छिपाते हैं और अपनी सच्‍चाई को उजागर करने से बचते हैं। वे अस्‍पष्‍ट और धुंधले उत्‍तर देते हैं, और उनके कार्यो मे स्‍पष्‍टता की कमी होती है।

  • आत्‍म-रक्षा और बहाने बनाना :-

    जब दोहरा चरित्र वाले व्‍यक्ति का सामना उनके विरोधाभासी आचरण से होता है तो वे अक्‍सर आत्‍म-रक्षा मे आ जाते हैं और बहाने बनाने लगते हैं। वे अपनी गलतियों को स्‍वीकार करने की बजाय तर्क और सफाई देने का प्रयास करते हैं ।

दोहरे चरित्र का सामना कैसे करें :-

दोहरा चरित्र का एक व्‍यापक समस्‍या है, लेकिन इसे संबोधित किया जा सकता है। इसके लिए व्‍यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्‍तरों पर प्रयासों की आवश्‍यकता होती है।

  • स्‍वयं की ईमानदारी :-

    प्रत्‍येक व्‍यक्ति को अपने विचारों और आचरण के बीच समरूपता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आत्‍म-जागरूकता और आत्‍म-निरीक्षण महत्‍वपूर्ण हैं। जब व्‍यक्ति अपने मूल्‍यों और आचरण मे संगति बनाए रखता है, तो वह न केवल स्‍वयं के प्रति सच्‍चा होता है बल्कि दूसरों के लिये भी एक सकारात्‍मक उदाहरण प्रस्‍तुत करता है।

  • शिक्षा और संवेदनशीलता :-

    समाज को शिक्षा के माध्‍यम से नैतिकता और ईमानदारी के महत्‍व के बारे मे जागरूक किया जा सकता है। शिक्षा संस्‍थानों मे नैतिक शिक्षा और चरित्र निर्माण पर ध्‍यान केन्द्रित किया जाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी दोहरे चरित्र की बुराइयों से अवगत हो और सच्‍चाई और ईमानदारी के मूल्‍यों को अपनाएं।

  • सामाजिक न्‍याय :-

    दोहरे चरित्र का एक मुख्‍य कारण सामाजिक और आर्थिक असमानता है। जब लोग महसूस करते हैं कि उनके पास समान अवसर नही हैं तो वे दोहरा चरित्र अपनातें हैं। इसलिए एक न्‍यायपूर्ण और समान समाज का निर्माण दोहरे चरित्र को कम करने मे मदद कर सकता है।

  • पारदर्शिता और उत्‍तरदायित्‍व :-

    संस्‍थाओं और संगठनों मे पारदर्शिता और उत्‍तरदायित्‍व को बढ़ावा देना आवश्‍यक है। जब लोग महसूस करते हैं कि उनके आचरण पर निगरानी रखी जा रही है और वे अपने कार्यो के लिए जवाबदेह हैं तो दोहरे चरित्र की प्रवृत्ति कम हो सकती है।

निष्‍कर्ष :-

दोहरा चरित्र एक जटिल और व्‍यापक समस्‍या है जो समाज और मनोविज्ञान दोनों को प्रभावित करती है। इसे समझने और संबोधित करने के लिए हमें व्‍यक्तिगत और सामाजिक स्‍तर पर प्रयास करने की आवश्‍यकता है। जब लोग अपने विचारों और आचरण मे समरूपता बनाए रखते हैं और समाज मे पारदर्शिता और न्‍याय की भावना होती है, तो दोहरे चरित्र की प्रवृत्ति कम होती है। 

दोस्‍तों, दोहरा चरित्र न केवल व्‍यक्तिगत मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक संरचना को भी कमजोर करता है। इसलिए यह आवश्‍यक है कि हम इस समस्‍या को गंभीरता से लें और इसके समाधान के लिए सक्रिय कदम उठाएं। समाज मे सच्‍चाई, ईमानदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा देना ही दोहरे चरित्र की समस्‍या को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है।