
अंतर मन की कसक
हर इंसान के मन मे किसी न किसी बात को लेकर एक कसक होती है । कसक किसे कहते है और इस कसक को कैसे ठीक करते है हर मन मे यही सवाल होता है पुत्र का पिता के प्रति ये कर्तव्य न केवल परिवार के बीच समर्पण और सजगता को बढ़ाते हैं, बल्कि उन्हें एक सामाजिक और आध्यात्मिक संदर्भ में भी सीखने का अवसर प्रदान करते हैं।



मन की कसक:
आज इस दुनिया के हर इंसान के मन मे किसी न किसी बात को लेकर एक कसक जरूर होती है चाहे वह कसक नौकरी को लेकर हो, किसी लडकी को लेकर हो ,दोस्तो को लेकर हो या फिर अपने माता पिता को लेकर हो । यदि किसी इंसान के मन मे अपने माता पिता को लेकर कसक बना हुआ है तो मन शांत नही रहेगा चाहे इंसान के पास भले ही सब कुछ क्यू न हो । इंसान का दिमाग उस मन की कसक को ढूढता ही रहेगा कि क्यू मेरे मन मे अशांति बनी हुई है जबकि मेरे पास तो सब कुछ है । इसी को मन की कसक भी कहते है अब यहां पर कितने ऐसे लोग होंगे जो इस आर्टिकल को पढ रहे होंगे जो बहुत ही भोले भाले होंगे उनके मन मे यह सवाल जरूर आयेगा कि इस मन की कसक को दूर कैसे किया जाता है तो दोस्तो मै अपने मन की बात आप लोगो के सामने रख दिया हूं जिसे अपने जीवन मे शामिल कर अपने मन की कसक को हमेशा हमेशा के लिये दूर कर सकते हो ।
पुत्र का पिता के प्रति कई कर्तव्य होते हैं जो उसकी जिम्मेदारियों और संबंधों को दर्शाते हैं। ये कर्तव्य उसकी विकास, और समृद्धि, को बढाने के लिये आवश्यक होता है ।
1. आदर और समर्पण: पुत्र का पिता के प्रति पहला कर्तव्य उसके प्रति आदर और समर्पण का है। वह अपने पिता की मानवीय और सामाजिक सहायता करता है और उसकी सेवा करता है।
2. शिक्षा और निर्देश: पुत्र का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह अपने पिता से शिक्षा प्राप्त करे और उसके निर्देशों का पालन करे।
3. आत्म-विकास: पुत्र को अपने पिता के साथ समय बिताकर आत्म-विकास करना चाहिए। यह उसकी नैतिक और व्यक्तिगत बढ़त बनाए रखने में मदद करता है।
4. आर्थिक सहारा और जिम्मेदारी: यदि पुत्र आर्थिक रूप से समर्थ होता है, तो उसका पिता के प्रति आर्थिक सहारा करना एक महत्वपूर्ण कर्तव्य हो सकता है।
5. परिवार का संचालन: पुत्र को परिवार के संचालन में सहायक होना चाहिए, विशेषकर अगर उसे अपने पिता के बाद परिवार का कार्य संभालना है।
6. साथी और सहायक: पुत्र का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह अपने पिता को उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं में साथी और सहायक बनाए रखे।
पुत्र का पिता के प्रति ये कर्तव्य न केवल परिवार के बीच समर्पण और सजगता को बढ़ाते हैं, बल्कि उन्हें एक सामाजिक और आध्यात्मिक संदर्भ में भी सीखने का अवसर प्रदान करते हैं।