जहां आपका पूर्ण समर्पण होगा:वहां धीरे-धीरे आपकी अहमियत शून्‍य हो जाएगी-जीवन का कड़वा सत्‍य

क्‍या सच में पूर्ण समर्पण के बाद व्‍यक्ति की अहमियत कम हो जाती है? इस लेख में हम इस मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सत्‍य को समझेंगे कि क्‍यों लोग समर्पित व्‍यक्तियों की कमीत धीरे-धीरे भूलने लगते हैं। साथ ही, इससे बचने के उपायों और आत्‍मसम्‍मान को बनाए रखने के तरीकों पर भी चर्चा करेंगे।

3/16/20251 मिनट पढ़ें

जहां आपका पूर्ण समर्पण होगा
जहां आपका पूर्ण समर्पण होगा

भूमिका

जीवन में कई बार हम किसी रिश्‍ते, कार्यस्‍थल, समाज या समुदाय में पूरी निष्‍ठा और समर्पण के साथ कार्य करते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हम यह महसूस करने लगते हैं कि हमारी उपस्थिति या योगदान को महत्‍व नहीं दिया जा रहा। यह एक कटु सत्‍य है कि जहां व्‍यक्ति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाता है,वहां उसकी अहमियत धीरे-धीरे कम हो जाती है। इस लेख में हम इस मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलू को विस्‍तार से समझेंगे और इससे बचने के उपायों पर भी चर्चा करेंगे।

समर्पण का स्‍वाभाविक गुण

निस्‍वार्थ भाव से कार्य करने की प्रवृत्ति

मनुष्‍य का स्‍वभाव है कि वह अपने प्रियजनों,कार्य और समाज के प्रति निस्‍वार्थ भावना से समर्पित रहता है। यह गुण उस महान बनाता है और दूसरों का विश्‍वास अर्जित करने में सहायक होता है। समर्पण का अर्थ केवल त्‍याग नहीं है, बल्कि यह असंतोष और मानसिक शांति का भी प्रतीक है।

समर्पण से मिलने वाला संतोष

जो व्‍यक्ति किसी कार्य में अपना शत-प्रतिशत देता है, उसे मानसिक संतोष और आत्‍मसंतुष्टि मिलती है। यह समर्पण ही उसे अन्‍य लोगो से अलग बनाता है। जब कोई व्‍यक्ति किसी रिश्‍ते, कार्य या समाज के प्रति संपूर्ण निष्‍ठा दिखाता है, तो वह अपनी व्‍यक्तिगत पहचान को भी उसमें विलीन कर देता है। यह स्थिति कभी-कभी आत्‍मसम्‍मान को भी प्रभावित रक सकती है।

ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण

अगर हम ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों को देखें, तो हमें कई उदाहरण मिलते हैं जहां समर्पण को महानता का प्रतीक माना गया है। महात्‍मा गांधी, स्‍वामी विवेकानंद और अन्‍य महापुरूषों ने अपने जीवन को समाज और मानवता के कल्‍याण के लिए समर्पित कर दिया। हालांकि, उनके जीवन में भी ऐसे क्षण आए जब उनकी महानता को लोगों ने हल्‍के में लिया या उनकी उपेक्षा की गई। यह स्‍पष्‍ट करता है कि समर्पण का मूल्‍य समय के साथ बदल सकता है।

समर्पण का स्‍वाभाविक गुण
समर्पण का स्‍वाभाविक गुण

लेकिन क्‍यों घटने लगती है अहमियत?

जब लोग आदत बना लेते हैं

जब कोई व्‍यक्ति लगातार निस्‍वार्थ भाव से दूसरों के लिए कार्य करता रहता है, तो लोग इसे उसकी जिम्‍मेदारी समझने लगते हैं। धीरे-धीरे वे इसे समान्‍य मान लेते हैं और उसकी मेहनत को विशेष नहीं समझते। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति है जब कोई चीज नियमित रूप से उपलब्‍ध होती है, तो उसकी अहमियत धीरे-धीरे कम होने लगती है।

अपेक्षाओं का बढ़ना

समर्पण के साथ अपेक्षाएं भी बढ़ती है। लोग यह मानने लगते हैं कि आप बिना किसी स्‍वार्थ के हमेशा उनकी सहायता करेंगे। जब उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो वे आपकी आलोचना करने लगते हैं। यह स्थिति खासकर पारिवारिक और पेशेवर जीवन में देखने को मिलती है, जहां व्‍यक्ति अपने दायित्‍वों को पूरा करने के लिए अपनी इच्‍छाओं और जरूरतों को अनदेखा कर देता है।

आत्‍मसम्‍मान की अनदेखी

पूर्ण समर्पण के कारण कई बार व्‍यक्ति अपने आत्‍मसम्‍मान को भूल जाता है और दूसरों की इच्‍छाओं को प्राथमिकता देता है। इससे उसकी पहचान कमजोर पड़ने लगती है। व्‍यक्ति को यह समझना चाहिए कि उसका मूल्‍य केवल उसे समर्पण से नहीं, बल्कि उसकी योग्‍यता, विचारों और आत्‍मनिर्भरता से भी तय होता है।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव

समर्पण करने वाले व्‍यक्ति के मन में धीरे-धीरे निराशा और तनाव बढ़ने लगते हैं। जब उसे यह एहसास होता है कि उसका योगदान अनदेखा किया जा रहा है,तो उसकी मानसिक स्थिति प्रभावित होती है। यह स्थिति आत्‍म-संदेह, आत्‍म-हीनता और कभी-कभी अवसाद का भी कारण बन सकती है।

क्‍यों घटने लगती है अहमियत?
क्‍यों घटने लगती है अहमियत?

इससे बचने के उपाय

सीमाएं निर्धारित करें

आपका समर्पण आपकी कमजोरी नहीं, बल्कि आपकी शक्ति होनी चाहिए। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने कार्य और रिश्‍तों में एक संतुलन बनाएं रखें और जरूरत से ज्‍यादा झुकने से बचें। दूसरों के प्रति प्रेम और दायित्‍व का भाव रखना अच्‍छा है, लेकिन उसमें अपनी पहचान को न खोने दें।

आत्‍ममूल्‍य को पहचानें

यह समझना जरूरी है कि आपका मूल्‍य केवल आपके समर्पण से नहीं, बल्कि आपके व्‍यक्तित्‍व और विचारों से भी है। इसलिए आत्‍मसम्‍मान बनाए रखें और अपनी सीमाओं को समझें। यदि लोग आपकी उपस्थिति और योगदान को महत्‍व नहीं दे रहे हैं, तो अपने प्रयासों को ऐसे स्‍थानों पर केंद्रित करें जहां उनकी सराहना हो।

संतुलन बनाना सीखें

जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखना आवश्‍यक है। बिना संतुलन के यदि आप केवल देने वाले बन जाते हैं, तो लोग आपको हल्‍के में लेने लगेंगे। इसलिए अपनी प्राथमिकताओं को स्‍पष्‍ट रखें और अपने कार्यों में आत्‍मनिर्भरता बनाए रखें।

'ना' कहना सीखें

हर समय दूसरों की इच्‍छाओं को पूरा करना आवश्‍यक नहीं है। जब भी जरूरत महसूस हो, तो विनम्रता से मना करना सीखें। इससे लोग आपकी अहमियत को समझेंगे और आपका सम्‍मान भी बढ़ेगा।

अपनी खुशी को प्राथमिकता दें

कई बार हम दूसरों को खुश करने के प्रयास में अपनी खुशी को भूल जाते हैं। यह जरूरी है कि हम अपनी भावनाओं और इच्‍छाओं को भी महत्‍व दें। अपने लिए समय निकालें, अपनी रूचियों को अपनाएं और आत्‍म-संतुष्टि प्राप्‍त करें।

सही स्‍थान पर समर्पण करें

समर्पण करना गलत नहीं है, लेकिन यह महत्‍वपूर्ण है कि आप इसे सही स्‍थान और सही लोगों के लिए करें। ऐसे लोगों और संगठनों के लिए कार्य करें जो आपके प्रयासों को सराहें और उसकी कद्र करें।

बचने के उपाय
बचने के उपाय

निष्‍कर्ष

समर्पण एक महान गुण है, लेकिन अगर यह अंधाधुंध रूप से किया जाए, तो यह व्‍यक्ति की अहमियत को कम कर सकता है। जहां व्‍यक्ति पूर्ण समर्पण करता है, वहां लोग धीरे-धीरे उसकी कीमत भूलने लगते हैं। इसलिए अपने जीवन में एक संतुलन बनाए रखें, आत्‍मसम्‍मान को प्राथमिकता दें और सीमाएं तय करें। समर्पण करें, लेकिन अपनी अहमियत को कभी खत्‍म न होने दें।

अपनी अहमियत को कभी खत्‍म न होने दें
अपनी अहमियत को कभी खत्‍म न होने दें